Sunday, October 24, 2010

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत
शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है ।

शेखावत वंश परिचय

वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात्मा ने राजा को वरदान दिया था कि जब तक तेरे वंशज अपने नाम के आगे पाल शब्द लगाते रहेंगे यहाँ से उनका राज्य नष्ट नहीं होगा |सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रशिध दुर्ग का निर्माण कराया | नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार) हुवा जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रशिध नायक है |उसका विवाह पुन्गल कि राजकुमारी मार्वणी के साथ हुवा था, ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परमप्रतापी महाराजाधिराज बज्र्दामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया | बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी |मंगल राज दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए,किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला |सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद सोढ्देव का पुत्र दुल्हेराय हुवा | जिनका विवाह dhundhad के मौरां के चौहान राजा की पुत्री से हुवा था |दौसा पर अधिकार करने के बाद दुल्हेराय ने मांची, bhandarej खोह और झोट्वाडा पर विजय पाकर सर्वप्रथम इस प्रदेश में कछवाह राज्य की नीवं डाली |मांची में इन्होने अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनवाया | वि.सं. 1093 में दुल्हेराय का देहांत हुवा | दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव पिता के उतराधिकारी हुए जिन्होंने आमेर के सुसावत जाति के मीणों का पराभव कर आमेर जीत लिया और अपनी राजधानी मांची से आमेर ले आये | काकिलदेव के बाद हणुदेव व जान्हड़देव आमेर के राजा बने जान्हड़देव के पुत्र पजवनराय हुए जो महँ योधा व सम्राट प्रथ्वीराज के सम्बन्धी व सेनापति थे |संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने,राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओं का निकास हुवा |उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे |बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखा का जनम वि.सं. 1490 में हुवा |वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने | राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया | राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये जिनमे अनेकानेक वीर योधा,कला प्रेमी व स्वतंत्रता सेनानी हुए |शेखावत वंश जहाँ राजा रायसल जी,राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी,सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की वहीं बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह, जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजा दिया था |

शेखावत वंश की शाखाएँ

1. शेखावत वंश की शाखाएँ
1.1 टकनॆत शॆखावत
1.2 रतनावत शेखावत
1.3 मिलकपुरिया शेखावत
1.4 खेज्डोलिया शेखावत
1.5 सातलपोता शेखावत
1.6 रायमलोत शेखावत
1.7 तेजसी के शेखावत
1.8 सहसमल्जी का शेखावत
1.9 जगमाल जी का शेखावत
1.10 सुजावत शेखावत
1.11 लुनावत शेखावत
1.12 उग्रसेन जी का शेखावत
1.13 रायसलोत शेखावत
1.13.1 लाड्खानी
1.13.2 रावजी का शेखावत
1.13.3 ताजखानी शेखावत
1.13.4 परसरामजी का शेखावत
1.13.5 हरिरामजी का शेखावत
1.13.6 गिरधर जी का शेखावत
1.13.7 भोजराज जी का शेखावत
1.14 गोपाल जी का शेखावत
1.15 भेरू जी का शेखावत
1.16 चांदापोता शेखावत

शेखा जी पुत्रो व वंशजो के कई शाखाओं का प्रदुर्भाव हुआ जो निम्न है |

रतनावत शेखावत
महाराव शेखाजी के दुसरे पुत्र रतना जी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाये इनका स्वामित्व बैराठ के पास प्रागपुर व पावठा पर था !हरियाणा के सतनाली के पास का इलाका रतनावातों का चालीसा कहा जाता है

मिलकपुरिया शेखावत
शेखा जी के पुत्र आभाजी,पुरन्जी,अचलजी के वंशज ग्राम मिलकपुर में रहने के कारण मिलकपुरिया शेखावत कहलाये इनके गावं बाढा की ढाणी, पलथाना ,सिश्याँ,देव गावं,दोरादास,कोलिडा,नारी,व श्री गंगानगर के पास मेघसर है !

खेज्डोलिया शेखावत
शेखा जी के पुत्र रिदमल जी वंशज खेजडोली गावं में बसने के कारण खेज्डोलिया शेखावत कहलाये !आलसर,भोजासर छोटा,भूमा छोटा,बेरी,पबाना,किरडोली,बिरमी,रोलसाहब्सर,गोविन्दपुरा,रोरू बड़ी,जोख,धोद,रोयल आदि इनके गावं है !
बाघावत शेखावत - शेखाजी के पुत्र भारमल जी के बड़े पुत्र बाघा जी वंशज बाघावत शेखावत कहलाते है ! इनके गावं जय पहाड़ी,ढाकास,Sahanusar,गरडवा,बिजोली,राजपर,प्रिथिसर,खंडवा,रोल आदि है !

सातलपोता शेखावत
शेखाजी के पुत्र कुम्भाजी के वंशज सातलपोता शेखावत कहलाते है

रायमलोत शेखावत
शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमल जी के वंशज रायमलोत शेखावत कहलाते है ।

तेजसी के शेखावत
रायमल जी पुत्र तेज सिंह के वंशज तेजसी के शेखावत कहलाते है ये अलवर जिले के नारायणपुर,गाड़ी मामुर और बान्सुर के परगने में के और गावौं में आबाद है !

सहसमल्जी का शेखावत
रायमल जी के पुत्र सहसमल जी के वंशज सहसमल जी का शेखावत कहलाते है !इनकी जागीर में सांईवाड़ थी !

जगमाल जी का शेखावत
जगमाल जी रायमलोत के वंशज जगमालजी का शेखावत कहलाते है !इनकी १२ गावों की जागीर हमीरपुर थी जहाँ ये आबाद है

सुजावत शेखावत
सूजा रायमलोत के पुत्र सुजावत शेखावत कहलाये !सुजाजी रायमल जी के ज्यैष्ठ पुत्र थे जो अमरसर के राजा बने !

लुनावत शेखावत
लुन्करण जी सुजावत के वंशज लुन्करण जी का शेखावत कहलाते है इन्हें लुनावत शेखावत भी कहते है,इनकी भी कई शाखाएं है !

उग्रसेन जी का शेखावत
अचल्दास का शेखावत,सावलदास जी का शेखावत,मनोहर दासोत शेखावत आदि !

रायसलोत शेखावत
लाम्याँ की छोटीसी जागीर से खंडेला व रेवासा का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने वाले राजा रायसल दरबारी के वंशज रायसलोत शेखावत कहलाये !राजा रायसल के १२ पुत्रों में से सात प्रशाखाओं का विकास हुवा जो इस प्रकार है -

लाड्खानी
राजा रायसल जी के जेस्ठ पुत्र लाल सिंह जी के वंशज लाड्खानी कहलाते है दान्तारामगढ़ के पास ये कई गावों में आबाद है यह क्षेत्र माधो मंडल के नाम से भी प्रशिध है पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी इसी वंश से है !

रावजी का शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र तिर्मल जी के वंशज रावजी का शेखावत कहलाते है !इनका राज्य सीकर,फतेहपुर,लछमनगढ़ आदि पर था !

ताजखानी शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र तेजसिंह के वंशज कहलाते है इनके गावं चावंङिया,भोदेसर ,छाजुसर आदि है

परसरामजी का शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते है !

हरिरामजी का शेखावत
हरिरामजी रायसलोत के वंशज हरिरामजी का शेखावत कहलाये !

गिरधर जी का शेखावत
राजा गिरधर दास राजा रायसलजी के बाद खंडेला के राजा बने इनके वंशज गिरधर जी का शेखावत कहलाये ,जागीर समाप्ति से पहले खंडेला,रानोली,खूड,दांता आदि ठिकाने इनके आधीन थे !

भोजराज जी का शेखावत
राजा रायसल के पुत्र और उदयपुरवाटी के स्वामी भोजराज के वंशज भोजराज जी का शेखावत कहलाते है ये भी दो उपशाखाओं के नाम से जाने जाते है, १-शार्दुल सिंह का शेखावत ,२-सलेदी सिंह का शेखावत

गोपाल जी का शेखावत
गोपालजी सुजावत के वंशज गोपालजी का शेखावत कहलाते है |

भेरू जी का शेखावत
भेरू जी सुजावत के वंशज भेरू जी का शेखावत कहलाते है |

चांदापोता शेखावत
चांदाजी सुजावत के वंशज के वंशज चांदापोता शेखावत कहलाये ।

**कही भी लिखने मे कोई त्रुटि हो तो क्षमा करे....
ध्यानवद

राजऋषि ठाकुर श्री मदनसिंह जी,दांता


ठाकुर गंगा सिंह दांता के ज्येष्ठ पुत्र केशरी सिंह के निसंतान निधन हो जाने के बाद ठाकुर गंगासिंहजी की मृत्यु के बाद उनके द्वतीय पुत्र मदनसिंह जी दांता ठिकाने की गद्दी के स्वामी बने |
मदन सिंह जी का जन्म चेत्र शुक्ल नवमी वि.स.१९७७ में ठाकुर गंगासिंह जी की ठकुरानी सूरजकँवर की कोख से हुआ | आपने मेयो कालेज अजमेर से डिप्लोमा तक शिक्षा प्राप्त की |
ठाकुर मदनसिंह दांता जयपुर स्टेट की सवाई मानसिंह गार्ड में कम्पनी कमांडर (कप्तान) थे | तथा उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में वीरता और साहस के साथ शत्रु पर आक्रमण कर विजय पाई |
जागीर समाप्ति तक आप दांता ठिकाने के शासक रहे वे दांता के अपने पूर्वज अमरसिंह के सोलहवीं पीढ़ी पर थे | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनेक राजनैतिक दलों का गठन हुआ | स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा संस्थापित अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की राजस्थान प्रदेश शाखा के अध्यक्ष पद पर ठाकुर मदनसिंह दांता को निर्वाचित किया गया | सन १९५२ के प्रथम लोकसभा चुनाव में सीकर जिले के कांग्रेस की रीढ़ समझे जाने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार कमलनयन बजाज को हराकर अपने ही जिले में राम राज्य परिषद के उम्मीदवार नंदलाल शास्त्री को विजयी बनाने का श्रेय ठाकुर मदनसिंह दांता को ही जाता है |
सन १९५५-५६ में राजस्थान के भू-स्वामियों ने कांग्रेस सरकार के विरोध में अपनी मांगों को लेकर एक बहुत बड़ा सत्याग्रह-आन्दोलन किया था | इस भू-स्वामी आन्दोलन के अध्यक्ष ठाकुर मदनसिंह दांता ही थे | ठाकुर मदनसिंह दांता ने कुंवर रघुवीरसिंह जावली,शिवचरणसिंह निम्बेहेड़ा,तनसिंह बाड़मेर,कुंवर आयुवानसिंह हुडील,सौभाग्यसिंह भगतपुरा,सवाईसिंह धमोरा व अन्य क्षत्रिय समाज के समर्पित,कर्मठ कार्यकर्ताओं के सहयोग से भू-स्वामी संघ के सत्याग्रह आन्दोलन का संचालन किया | इस आन्दोलन में आप एक साहसी व निडर व्यक्तित्व वाले राजपूत नेता के रूप में उभरे | आपको राजऋषि की उपाधि से विभूषित किया गया उस समय आप एक प्रभावशाली लोकप्रिय नेता के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे | आपने रामगढ तहसील से तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतकर अपनी लोकप्रियता का परिचय दिया | १९७७ की जनता पार्टी की लहर में भी आपने कांग्रेस के नारायणसिंह और जनता पार्टी के गोपालसिंह राणोली को करारी मात देते हुए आप निर्दलीय विधायक के रूप में दांता-रामगढ से विधानसभा में पहुंचे | दांता रामगढ विधानसभा क्षेत्र से तीन बार कांग्रेस पार्टी को हारने वाले आप एक मात्र व्यक्ति रहे | आपने ग्राम दुधवा को लुटने वाले डाकुओं का निडरतापूर्वक पीछा किया | डाकुओं की गोलीबारी के बावजूद आपने उनसे अकेले ही लोहा लेते हुए उनके ऊँटों को मारकर डकैतों को पकड़ लिया था |

ठाकुर साहब की उदारता व देशप्रेम भी काबिले तारीफ था कोई भी जरुरत मंद गरीब उनके यहाँ से कभी खाली हाथ नहीं लौटता था ,रास्ते चलते भी उन्हें कोई जरुरत मंद मिल जाता तो तो वे अपने पास जो कुछ होता दे देते थे |
सन १९६२ में भारत चीन युद्ध हुआ जो सर्वविदित है | उस समय भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री कृष्ण मेनन ने जयपुर के रामनिवास बाग़ में एक जनसभा कर देश के लिए रक्षा कोष में दान देने की अपील की थी |
उस समय दांतापति ठाकुर श्री मदनसिंह ने अपने ठिकाने की मुवावजे की एक लाख की राशी दान स्वरुप रक्षा कोष में दे दी थी और अपने जयेष्ट पुत्र श्री ओमेन्द्रसिंह को व अपने खानदान की सुनहरी मूठ की तलवार भी रक्षा कोष में अर्पित किया था |

एक लाख रोकड़ दिया ,कनक मूठ कृपान |
सुत ओमेन्द्र को दिया , देश हितार्थ दान ||

ठाकुर साहब का विवाह कचोल्या( किशनगढ़ )के महाराज ओनाड़सिंह जी की पुत्री जोधी जी नन्दकँवर के साथ संपन्न हुआ था, जिनकी कोख से आपको पांच पुत्र रत्न प्राप्त हुए
१- ओमेन्द्रसिंह २- दिलीपसिंह ३- जीतेन्द्रसिंह ४-करणसिंह ५- राजेंद्रसिंह

एक शख्‍स जो पंडित नेहरू के इस प्रस्‍ताव के आगे भी नहीं झुका-
" आप भू स्‍वामी आंदोलन के जरिये सिर्फ कुछ भू स्‍वामियों की बात कर रहे हैं...मेरे साथ आइए ...कई जागीरें आपके कदमों में होंगी."

Some sayings of Thakur Saheb:-
Tell ur Nehru , vo jab apna janeu khoonti pe taank dega, tab main bhee talwar bahar chod dunga!! what a great person!!

Friday, April 23, 2010

History Of Danta

DANTA (Thikana)




AREA:
LOCATION: Jaipur

REVENUE:
DYNASTY: Shekhawat

ACCESSION:
RELIGION: Hindu


PRESENT HEAD OF HOUSE:
Thakur Omendra Singh Ji Danta (Elder Son Of Thakur Sahaib Madan Singh Ji Danta)

Thakur Sahaib Madan Singh Ji Danta was born in 1920, educated at Mayo College, Ajmer; served as Captain in the Sawai Man Guards, and later served in the Rajendra Hazari Guards,
Chairman of the Rajasthan unit of Parishad, elected to the Vidhan Sabha in 1952, married Thakurani Nand Kanwar of Kacholya in Kishangarh, and has issue.



Generation:

• Kunwar Omendra Singh, married Kunwarani Krishna Kumari of Jamala in Gujarat.
• Kunwar Dalip Singh. married Kunwarani Kumud Kumari of Khawa.
• Kunwar Jitendra Singh, married Kunwarani Chandra Kiran Kumari of Hanutpura.
• Kunwar Karan Singh, married Kunwarani Krishna Kumari of Gudiya.
• Kunwar Rajendra Singh, married Kunwarani Nutan Kumari of Ratlam.

PREDECESSORS AND SHORT HISTORY:

Danta was a state tax thikana feudataria protected Jaipur, the Shekawati, Rajputana. Not to be confused with the principality of Danta.
Raja Bir Singh Deo of Khandela Losal gave the village and nine others to his son Kunwar Amar Singh of which begins the saga. The Thakur Amar Singh built the fort of the Rajpur 1646 and Losal of the 1654 and 1669 was the town of Dante's Maharaja Jaswant Singh of Jodhpur. The 1699 Rattan Singh established the capital Danta, the 1754 Bhawani Singh built a fort at Danta. In 1827 the town received Sardul Singh Bhadana of the Maharaja of Jodhpur, but his only son before he died and was succeeded by his brother Balwant Singh, who also left his children was successively psssar collateral branches to Cork oak branch which was consolidated in 1928as the Thakur Ganga Singh if they had children (one of whom, Madan Singh, succeeded him in the title).
Danta is a village in Rajasthan, India. Danta Fort is a historical site near the village. The fort, known as Danta Dera Fort, is now a heritage hotel.
Karni Mata Temple located near the village, which is made by Thakur Madan Singh Danta, and donated to Sayar Baisa (lady who use to perform the pooja in the temple) along with 300 bega land to meet the expenses to run the temple.Originally the temple building was a hunting lodge. The village was first settled by Thakur Amar Singh Shekhawat, about 400 years back.

Raja Bir Singh Deo of Khandela granted the village of Losal with nine others to his son, Kunwar Amar Singh. Rulers were....



• Thakur Amar Singh Ji, constructed a fort at Rajpura in 1646, and later at Losal in 1654, he was granted the village of Danta by Maharaja Jaswant Singh Ji of Jodhpur in 1669, married and had issue. He died after 1669.

Thakur Ratan Singh Ji(qv)
Kunwar Jhujhar Singh Ji of Rajputa.
Kunwar Raj Singh Ji of Khandi, married and had issue.
Thakur Sawai Singh Ji
Kunwar Hathi Singh Ji of Khandi.
Kunwar Tej Singh Ji of Bhirana.
Kunwar Zorawar Singh Ji of Sami.
Kunwar Inder Singh Ji of Sami.



Thakur Ratan Singh Ji, made Danta his capital in 1699.
































Thakur Guman Singh, died sp.
Thakur Sawai Singh Ji, married and had issue.
Thakur Bhawani Singh Ji
Kunwar Madho Singh Ji of Surera.

Thakur Bhawani Singh Ji, constructed the fort of Danta in 1754, married and had issue.

Thakur Hari Singh Ji.
Kunwar Bishan Singh Ji, died young.
Kunwar Bagh Singh Ji of Sesam, adopted his nephew.


Thakur Hari Singh Ji, married Thakurani Roop Kanwar of Chandawal.
Thakur Amani Singh Ji (qv)
Kunwar Jiwan Singh Ji, adopted by his uncle Bagh Singh Ji of Sesam, married and had issue.

Several generations:

Thakur Bidad Singh Ji, married and had issue.
Thakur Baldeo Singh Ji (see below)
Kunwar Fateh Singh Ji, married and had issue.
Thakur Ramnath Singh Ji (see below)

Generation

Thakur Laxman Singh Ji, married and had issue.
Thakur Udai Singh Ji (see below)
Thakur Amani Singh Ji, married and had issue. He died in 1801.
Thakur Nawal Singh Ji
Kunwar Hanuwant Singh Ji, died young.
Thakur Nawal Singh Ji 1801, married and had issue.
Thakur Sardul Singh Ji.
Thakur Balwant Singh Ji.

Thakur Sardul Singh Ji, was granted the village of Bhadaana by the Maharaja of Jodhpur in 1827, married Thakurani Takhat Kanwar of Bhadrajun and had issue.

Kunwar Kesari Singh Ji, died vpsp.
Thakur Balwant Singh Ji, died sp 1854.
Thakur Baldeo Singh Ji 1854/1869, died sp 1869.
Thakur Ramnath Singh Ji 1869/-, married two wives. He died sp.
Thakur Udai Singh Ji, died sp.
Thakur Prem Singh Ji 1902/1928, son of Thakur Ranjit Singh Ji of Jana, died sp.
Thakur Ganga Singh Ji 1928/-, son of Thakur Sukh Singh Ji of Surera, married and had issue.

Kunwar Kesari Singh Ji, married Kunwarani Bishan Kanwar of Osian, and had issue. He died vp.
Rani Shakuntala Devi, married Rana Arjun Singh Ji of Jobat, and had issue.
Thakur Madan Singh Ji(qv)
Thakur Jagdev Singh Ji
Thakur Hem Singh Ji, married 1stly, Thakurani Rajendra Kanwar of Kanota, married 2ndly, Thakurani Anand Kanwar of Jijot, and had issue.
Thakur Umed Singh Ji, married Thakurani Sita Kanwar of Sirsi, and had issue.
Kunwar Virendra Singh Ji.
Kunwar Vijendra Singh Ji.
Thakur Ajit Singh Ji, married Thakurani Prem Kanwar of Keraap, and had issue.
Kunwar Praveen Singh Ji
Kunwar Narendra Singh Ji
Thakurani Shrimant Daulat Kunwarji, married 15th February 1945 in Danta, Thakur Prithviraj Singh Ji of Bidwal.
Thakur Madan Singh Ji (see above)

OTHER MEMBERS:
Thakur of Danta-Jaipur, married in 1905, Thakurani Basant Kanwar, born about 1892, daughter of Kanwar Mehtab Singh Ji of Peelwa.

Kanwar Saheb of Danta-Jaipur, married Kanwarani Raghuraj Kumari, daughter of Thakur Daulat Singh ji of Balunda.

The fort, known as Danta Dera Fort, is now a heritage hotel.
Some More Pictures Of Danta Fort: